Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 123
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव [25 (पूर्वोक्त 28 - पीत, | 16 ( पूर्वोक्त 13 + पीत पद्म लेश्या, वेदक पद्म लेश्या, वेदक सम्यक्त्व) | सम्यक्त्व) 9 सवेद 3 (वेद तीन ) 25 (पूर्वोक्त ) 16 (पूर्वोक्त) 9 अवेद (क्रोधादि 22 (पूर्वोक्त 25 - 3 वेद)| 19 (पूर्वोक्त 16 + 3 तीनों में से वेद) विवक्षित एक) - संदृष्टि नं.60 लोभ कषाय भाव (41) लोभ कषाय में 41 भावों का सद्भाव जानना चाहिए। इसमें क्रोधादि 3 कषायों का अभाव और लोभ कषाय मात्र का सद्भाव जानना चाहिए। ये भाव इस प्रकार से हैं - उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सेम्यक्त्व, ज्ञान 4, दर्शन 3, कुज्ञान 3, क्षायो. लब्धि 5, वेदक सम्यक्त्व, सराग चारित्र, संयमासंयम, गति 4, लोभ कषाय, लिंग 3, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्व, लेश्या 6, जीवत्व, अभव्यत्व, भव्यत्व ये 41 भाव जानना चाहिए । लोभ कषाय में क्रोधादि 3 कषाय रहित 41 भाव की संयोजना करना चाहिए। शेष संदृष्टि क्रोधादि तीन कषायोंवत् जानना चाहिए। किन्तु इसमें प्रथम गुणस्थान से लेकर 10 गुणस्थान जानना चाहिए। संदृष्टि निम्न प्रकार से है - दे. क्रोध मानमाया जन्य संदृष्टि (59) । गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति | भाव अभाव 31 29 9 (सवेद) १ अवेद 10 (110) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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