Book Title: Bhav Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 128
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति सू. 2 (लोभ, सराग संयम) उप. क्षीण. 1 ( उपशम चारित्र) भाव Jain Education International 21 ( क्षायिक सम्यक्त्व, 9 (उप. चारित्र, क्षायिक मति आदि 4 ज्ञान, दर्शन चारित्र, पीत, पद्म 3, क्षायोपशम लब्धि 5, लेश्या, क्षायो. सरागसंयम, मनुष्यगति, सम्यक्त्व, पुल्लिंग संज्वलन लोभ कषाय, क्रोध, मान, माया शुक्ल लेश्या, अज्ञान, कषाय) असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व ) 20 (उपर्युक्त 21. में से लोभ कषाय सराग संयम कम करना तथा उप. चारित्र जोड़ना ) 13 (मति आदि 20 ( क्षायिक चारित्र, 4 ज्ञान, दर्शन3, क्षायिक सम्यक्त्व, मति क्षायो लब्धि 5, आदि 4 ज्ञान, दर्शन 3, अज्ञान) क्षायो. लब्धि 5, मनुष्यगति, शुक्ल लेश्या, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व) अभाव 10 (उपर्युक्त 9 में से उप. चारित्र कम करना लोभ कषाय तथा सराग संयम जोड़ना) 10 (उपशम चारित्र, सराग संयम, क्षायो. सम्यक्त्व, कषाय 4, पुल्लिंग, पीत, पद्म, लेश्या) केवलणाणे खाइयभावा मणुवगदी सुक्कलेस्साइ । जीवत्तं भव्वत्तमसिद्धत्तं चेदि चउदसा भावा ||97|| केवलज्ञाने क्षायिक भावा मनुष्यगतिः शुक्ललेश्या । जीवत्वं भव्यत्वमसिद्धत्वं चेति चतुर्दश भावाः ॥ अन्वयार्थ - (केवलणाणे) केवलज्ञान में (खाइयभावा) क्षायिक भाव (मणुवगदी ) मनुष्यगति (सुक्क लेस्साइ) शुक्ललेश्या ( जीवत्तं) जीवत्व (भव्वत्तं) भव्यत्व (च) और (असिद्धत्तं) असिद्धत्व (इदि) इस प्रकार ( चउदसा ) चौदह (भावा) भाव जानना चाहिए। (115) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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