Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust RaipurPage 49
________________ गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति {3} सासादन {कुमति, 2. कु श्रुत, कु अवधि ज्ञान} 3. मिश्र {0} 4. अविरत {5} { नरकगति, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या असंयम } Jain Education International भाव {24} {चक्षु, अचक्षु, दर्शन, कुमति, कुश्रुत, कु अवधि ज्ञान, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, नरकगति, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या, नपुंसक लिंग अज्ञान, असिद्धत्व असंयम, चार कषाय, | जीवत्व, भव्यत्व } {25} {चक्षु अचक्षु अवधि दर्शन, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, नरक गति, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या, नपुंसक लिंग, अज्ञान, असिद्धत्व असंयम, चार कषाय, जीवत्व, भव्यत्व, मति कुमति, श्रुत-कुश्रुत, अवधि - कु अवधि } तीन मिश्र ज्ञान {28} {औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, | क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, मति, श्रुत अवधि ज्ञान, चक्षु, अचक्षु, अवधि दर्शन, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, नरकगति, कृष्ण, नील, कपोत लेश्या, नपुंसक लिंग, अज्ञान, असिद्धत्व असंयम, चार कषाय, जीवत्व, भव्यत्व } अभाव {9} {औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, मति, श्रुत अवधि ज्ञान, क्षयोपशम सम्यक्त्व, अवधि दर्शन, मिथ्यात्व, अभव्यत्व } (8) {औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, मति, श्रुत अवधि ज्ञान, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, अभव्यत्व + कुज्ञान 3 - मिश्रज्ञान 3 } क्षयोपशमिक (5) {कुमति, कुश्रुत कुअवधि ज्ञान, मिथ्यात्व, अभव्यत्न} (36) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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