Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust RaipurPage 59
________________ कापोत लेश्या, असंयम एवं तिर्यंचगति इन तीनकीव्युच्छित्ति हो जाती है। टिप्पण - 1. भोगभूमिजतिर्यनिर्वृत्यपर्याप्तस्य सासादनगुणे तत्रस्थमतिश्रुताज्ञान द्वयस्य असंयतस्थित कृष्णनीललेश्याद्विकस्य च व्युच्छेदः। इत्यस्याः पूर्वार्धगाथाया भावः। कम्मभूमिजतिरिक्खे अण्णगदीतिदयखाइया भावा। मणपज्जवसमचरणं सरागचरियं च णेवत्थि |541 कर्मभूमिजतिरश्चि अन्यगतित्रितयक्षायिका भावाः । ... मनःपर्ययशमचरणं सरागचारित्रं च नैवास्ति ।। अन्वयार्थ - (कम्मभूमिजतिरिक्खे) कर्म भूमिज तिर्यञ्चों में (अण्णगदीतिदयखाइया भावा) तिर्यञ्च गति को छोड़कर अन्यतीन गतियाँ, क्षायिक भाव, (मणपज्जवसमचरणं) मनः पर्ययज्ञान, उपशमचारित्र (च) और (सरागचरियं) सरागचारित्र (णेवत्थि) नहीं होता है। संदृष्टि नं. 12 कर्म भूमिज तिर्यञ्च पर्याप्त (38 भाव) कर्म भूमिज तिर्यचों के पर्याप्त अवस्था में 38 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - उपशम सम्यक्त्व, कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक पांच लब्धि, संयमासंयम, तिर्यञ्च गति, क्रोध, मान, माया लोभ, कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल लेश्या, मिथ्यादर्शन, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, चक्षु दर्शन अचक्षु दर्शन, अवधिदर्शन, स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग, भव्यत्व, अभव्यत्व, जीवत्व, गुणस्थान आदि के पाँच होते हैं संदृष्टि इस प्रकार है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्तिा भाव । अभाव मिथ्यात्व | {2} (मिथ्यात्व |{31} {चक्षु अचक्षु (1)औपशमिक अभव्यत्व) दर्शन, कुमति, सम्यक्त्व, मति, श्रुत कुश्रुत, कुअवधि . अवधि ज्ञान, अवधि ज्ञान, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि, दर्शन,क्षयोपशमिक तिर्यञ्चगति, क्रोध, सम्यक्त्व, संयमासंयम} मान, माया, लोभ, कृष्ण नील कपोत, पीत, पद्म, शुक्ल लेश्या, मिथ्यात्व, (46) - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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