Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai
View full book text
________________
॥ इति अतिमुक्तकाऽऽख्यानकं समाप्तम् ।। कुरुदत्तमहर्षिसंविधानकमुच्यते--
नागपुरं नामेणं नयरं जं नायरायसीसं व । नाणामणि संकिण्णं दुद्धरिसं फलिहगिहधवलं ॥१॥ परिवसइ कोइ इन्भो तत्थ सुओतस्स नाम कुरुदत्तो। सो मुणिय भवसरूवो पढमे च्चिय जोवणारंभे।। तं रिद्धिमुज्झिऊणं चइऊण कलत्तसयणसंबंधं । पब्वजं पडिवजइ पढइ य अचिरेण सयलसुयं ॥३॥ कुणइ य तवोविसेसे बहवे पुञ्चि पवन्नियसरूवे । तो अन्नया पवजइ पडिमं अइभीसणमसाणे ॥४॥ अह तत्थ के कुढिया समागया वाहराए मुसियधणा | पुच्छंति पहं करुदत्तमणिवरं पहपरिभद्रा ॥५॥ जाव यन किं पिजंपइ एसो परमक्खरम्मि संलीणो | तो तेहिं अणजेहिं मट्टियपालि सिरे काउं ॥६॥ खित्तो चियाइ अग्गी कमसो बाहिं तओ जलियदेहो । अंतो सज्झाणानलपणासियासेसकम्ममलो ||७|| अंतगडकेवली होइऊण कुरुदत्तमहरिसी सिद्धो । एवमणंता सिद्धा तवहुयवहदड्ढकम्ममला ॥८॥
॥ इति कुरुदत्तकथानकमवसितं, तदवसाने च दशमी निर्जराभावना समाप्ता ॥ तपसा कर्म निर्जरयताऽप्युत्तमगुणेषु बहुमानः कार्यः, अन्यथा तपसोऽपि तथाविधफलाभावेन वैयर्थ्यप्रसंगात् , अतो निर्जरणभावनाऽनन्तरं उत्तमगुणभावनामाह

Page Navigation
1 ... 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516