Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai
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| सुन्नावणम्मि सुत्तो मोटं ओसीसयम्मि दाऊण । चिंतइ सऊणाण फलं दिढ सचण्णुणा ताव ॥३०॥
नब्वयणं च जुगते वि अन्नहा होइ नेव ता मज्झ । किं चिंताइ इमीए त्ति निच्छिउं निम्भरं सुत्तो ।३२॥ Kा एत्तो य बीयहिययं व राइणो सुमइनामओ मंती | परिवसइ तत्थ भजा जयावली तस्स ताणं तु ॥३२॥ || अट्ठण्ह सुयाणुवरिं जाया सोहग्गमंजरी नाम | धूया पाणे हितोऽवि वल्लहा सा य अणुरत्ता ॥३३॥ | इभसुयंमि सुदंसणनामे दुईहिं सो य भन्नंतो। नेच्छ्इ तं परिणे केणावि हु कारणवसेण ॥३४॥ | पि हु न देंति पियराइं तस्स अह छन्नपरिणयणहे । मन्नाविज्जइ बहुहा छम्मासं कुसलदूईए ॥३५॥ Sil तंमि दिणे पडिवन्नं गहिओ सुन्नावणम्मि संकेओ । दूइए समं सोहग्गमंजरी पवरसिंगारं ॥३६॥ | काउं पढमनिसाए गया तहिं तो गवेसमाणीए । दुईए अंधयारम्मि दुग्गओ लग्गओ हत्थे ॥३७॥ | पडियोहिऊण तीए तुट्टाए , चंदणेण स विलित्तो । उद्धलिओ समग्गो देहे कप्पूरधूलीए ॥३८॥
रइओ सिरम्मि सिरकुसुमसेहरो पारणेत्तवत्थाई । सुहुमाई अमोल्लाई तीए नियंसाविओ एसो ॥३९॥ Rell अइपवरनित्तलामलमोत्तियहारोऽवलंबिओ कंठे । दाहिणकरम्मि बद्धं च कंकणं ताण तो दूई ॥४०॥
गाह्इ करं करेणं सरावकयहुयवहस्स दावेइ । चत्तारि मंडलाइं अप्पइ दोण्हं पि तंबोलं ॥४१॥ अह सा पउमिणिनामा दूई तुट्ठा पुरहिया भणइ । अज कयत्था अणुरूयवहुवरे जोइयम्मि अहं ॥४२॥
॥४४१॥

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