Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai

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Page 494
________________ विमलमइपणइणि तो सो सुत्तो रइहरंमि गंतूणं । पन्नत्तीविज्जाओ नाऊणं तीइ सव्वं पि ॥१७॥ कहियं ता जाव तहिं मिलिया ते तत्थ दोऽवि अह सव्वं । सोउं महिंदसीहो परितुह्रो पुच्छए देविं ॥ कर असियक्खो वेरी सणंकुमारस्स ? देवि! मह कहसु । अह सा पन्नत्तीओ नाउं एवं पिपरिकहह ॥ कंचणारं ति नामेण पुरवरं अत्थि भरहवासम्मि । विक्कमजसो त्ति राया इत्थिलोलत्तणेणिमिणा ॥१०॥ पंचसयाई अंतेउरीण रूवाहियाण विहियाई । तत्थ वि य नागदत्तो नामेणं सत्थवाहो त्ति ॥१०१॥ विण्हुसिरी नामेणं तस्स पिया अमरसुंदरीणं पि । अभहिया रूवाइहिं लोयणमणमोहणगुणे हिं॥ विकमजसेण रन्ना दिट्ठा एसा तहिं पि तो खित्ता | मयाउरेण अंतेउरम्मि अह तीइ सह भोए ।१०३।। परिहरियरजकज्जो अवमन्नियसेसभजवग्गो य । परिभुंजइनिसिदिवसं सो अगणियलोयअववाओ॥ नियभजाए विउत्तो उम्मत्तो होइ नागदत्तोऽवि । कत्थ गया सि पिययमे ! ससंकमुहि ! पीणथणवट्टे? इच्चाइ पलवमाणो भमइ पुरे अन्नया य सेसाहिं । कम्मणजोएण या विण्हुसिरी निवइभजाहिं ॥१०६॥ तम्मरणम्मि य राया उम्मत्तो होइ नागदत्तो व्व । सोयइ कंदइ विलवइ न देइ दहिउं तयं मूढो । अह वंचिऊण मंतीहिं नरवरं कह वि सा मसाणम्मि । नेऊण उज्झिया तो अपासिउं २ सयं राया ॥ परिहरियभत्तपाणो गाढयरं विलवमाणओ जाओ । उम्मत्तमणो दटुं च तं तहा मंतिवग्गेण ॥१०९॥

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