Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai
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भवभावना प्रकरणे
सनत कुमार
रूप
दर्शनार्थदेवानामागमनम्
सब्वेवि हु अभिभूया जह सेसगह व्व सूरबिंवुदए | पन्भट्टतेयसिरिणो जाया विगयप्पहा झति ।१६२॥ अह तम्मि सुरम्मि गए सक्को पुट्ठो सुरेहिं सब्वेहिं । एरिसतेयस्स इमस्स सामि ! संगमयदेवस्स ॥ को हेऊ ? तो सको पभणइ एएण पुवजम्मम्मि । परिविहियं उग्गतवं आयंबिलवड्रमाणं ति ॥१६४॥ किं अन्नस्स वि कस्सइ तेयसिरी एरिसा इहं अत्थि ? इइ पुढेणं कहियं सक्केण सणंकुमारस्स ॥१६५॥ देवाण वि अन्भहियं रूवं तेओ य तो सुरा दोन्नि | विजओ यवे जयंतो तमसद्दहिउं इहं पत्ता ॥१६॥ वंभणरूवेण तओ सुयंधतेल्लेहिं विहियअभंगो | दिट्ठों सणंकुमारो तो रूवं तस्स दट्टणं ॥१६७॥ विम्हिय हियया चिंतंति सकभणियाओ रूवमेयस्स । अन्भहियं चिय तत्तो सविम्हयं ते परोप्परओ ॥ वयणं निरिक्खमाणा सणंकुमारेण पुच्छिया भद्दा !। किमिहागमणपओयणमह भणियं तेण तुम्हाणं भुवणभहियं सोउं रूवं दटुं इहाऽऽगया अम्हे । नियरूवगविओ तो भणइ नरिंदो जइ इमं ति ॥ तो उवविट्ठा चिट्ठह खणमेगं जाव मजणं काउं । अत्थाणसहाए अहं कयसिंगारो उवविसामि ॥१७॥ इम्हि तु मज्झ अब्भंगियस्स तुन्भेहिं रूवलेसोऽवि अज वि न हु दिट्ठो तो बहिं गया ते सुरा दो वि ॥ | चक्की वि य कयमजणविलेवणो पवरविहियसिंगारो । अत्थाणे उवविसिउं सद्दावइ दो वि ते विप्पे ॥ अह ते चक्किसरीरं दट्टणं विम्हिया परोप्परओ। अवलोयंति वयंति य सविसायमणा मणुस्साणं ॥
॥ ४६८॥

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