Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai
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पडलग्गतणं पिव उज्निऊण सव्वं पि चक्कवद्विसिरिं । पडिवजह पब्वजं थिरपगई सो गिरिंदोब्व ॥ Real अणुसरियं धीर ! तएचरियं निययाण पुचपुरिसाणं । सिरिभरहचक्कवटिप्पमुहाणं जयपसिद्धाणं ॥२०२॥
पेच्छइ य जणो सब्यो विलीयलक्खाई सपरदेहम्मि | विहवे सयणेसुतहा न य कुणइ जहा तए विहियं इच्चाइपयारेणं उबवूहे सणंकुमारमुणिं । ते देवा तुट्ठमणा तत्तो वचंति सुरलोयं ॥२०४॥ अह मंती सामंता रायाणो करितुरंगरहसुहडा । अंतेउरं समग्गं निहिणो अभियोगियसुरा य ॥२०५॥ अन्नोऽवि य परिवारो सणंकुमारस्स जाव छम्मासं । पट्टीइ परिन्भमिओ विलवंतो दीणवयणेहिं ।२०६। सीहावलोयणेण वि परं न कइया वि तेण सचविओ। तो तस्स निरीहत्तं विणिच्छिउं एस विणियत्तो रायरिसिणा वि पढमं छट्टे भत्ते कयंमि पारणए । चीणाकूरो लद्धो छगलियतक्केण सह भुत्तो ॥२०८॥ | पुणरवि छठें विहियं इचाइ कुणंतयस्स उग्गतवं । अणुचियआहारेहिं होति फुडा सत्तिमे रोगा ॥२०९॥ कंडू अभत्तसद्धा तिव्वा वियणा य अच्छिकुच्छीसु । कासं सासं च जर अहियासे सत्त वाससए ।२१० कुणमाणस्स य उग्गं एयरस तवं विसुद्धभावस्स | धीरस्स होति लद्धीओ गुरुप्पभावाओ जंभणियं ।। आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लमोसही चेव । सव्वोसहिपमुहाओ लद्धीओ 'सत्त जायंती॥ १ अत्ति-वा० ॥

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