Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai

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Page 471
________________ भवभावना प्रकरणे साण फलं ते केरिस त्ति सो दुग्गएण पुणरुत्तं । पुट्ठो छयाइ फलं साहइ पढमं पि तं च इमं । १७| rest पढमं नियकज्जं किं पि काउकामस्स । होइ सुहा असुहा वि य छीया दिसिभायभेएण | १८ | पुत्र्वदिसा ध्रुवलाभं जलणे हाणी जमालए मरणं । नेरइए उच्वेओ पच्छिमए परमसंपत्ती ॥ १९ ॥ वायव्वे सुहवत्ता धणलाभो होइ उत्तरे पासे । ईसाणे सिरिविजयं रज्जं पुण बंभठाणम्मि ||२०|| पहपट्टियस्स समुद्दा छीया मरणं नरस्स साहेइ । वज्जेह दाहिणं पि हु वामे पट्ठीए सिद्धिकरा ॥ २१ ॥ होइ पवेसे वामा असुहयरा दाहिणा सुहा भणिया । पट्ठीए हाणिकरा लाभकरा सम्मुही छीया ॥ २२ ॥ निगमे सोहणा वामा, पवेसे दाहिणा सुभा । सूलि सूलिकरा सामा, नरो पुन्नेहिं पावइ ||२३|| surt निसामे करमुभे अईव हरिसपरो। नच्चेइ दुग्गओ पुच्छए य तो सिद्धपुत्तोऽवि ||२४|| किं भद्द ! नचसि तुमं एवं ? तो भणइ एस जे तुमए । कहिया पसत्थसउणा जाया सच्चे वि ते मज्झ । नचामि ते तुट्टो एत्थंतरयम्मि आगओ तत्थ । विकमनामो राया पेच्छइ तं तह पणचंत्तं ॥ २६॥ पुच्छइ य कारणं सोऽवि तत्थ इयरोऽवि साहइ तमेव । तो सउणपरिक्वत्थं राया सग्रलम्मि नियनयरे आघोसावइ जो बाहिरागए जाव पंच दियहाई । दम्मस्स वि मुग्गे लेइ तस्स जीयं पि गिण्हामि ||२८|| तो भीया वाणियगा दुग्गयमुग्गे न लेंति जा कह वि । ता सयलं भमिऊणं दिवसं एसो परिस्संतो | २९ | धर्मादेव वाञ्छित - सुख प्राप्तौ श्रेष्ठिपुत्रकथा * ॥ ४४० ॥

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