Book Title: Bhav Bhavna Prakaranam Part 02
Author(s): Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai

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Page 453
________________ __ भव-: तवहुयवहम्मि खिविऊण जेहिं कणगंव सोहिओ अप्पा।तेअइमुत्तयकुरुदत्तपमुहमुणिणो नमसामि ४५६ ; तपसा भावना * कर्ममलप्रकरणे कः पुनरतिमुक्तकमुनिरिति ?, उच्यते : शोषणे जिणभवणवयंसयपल्ल वेहिं फुसइ ब्व जं ससिकलंकं । पोलासपुरे पवरम्मि तंमि विजओ महाराया ॥१॥ . अतिमुक्त*, तस्स य नामेण सिरी भजा सीहसुमिणसूइओ तीसे। जाओ पुत्तो अइमुत्तओ त्ति नामं च से विहियं ॥२॥ कुमार* किंचूणअट्टवरिसो अह सो समलंकिओ महग्धेहिं । वत्थाहरणेहिं पभूयरायउत्तेहिं परियरिओ ॥३॥ - कथानकम् कणयमएणं तिंदूसएण कीलेइ रायमग्गम्मि । तम्मि य काले बाहिं समोसढो तत्थ जिणवीरो ॥४॥ * तत्तो गोयमसामी गोयरचरियाइ आगओ तत्थ । तं दद्रु अइमुत्तो माई न अंगेसु परितुट्ठो ॥५॥ । तो समुहो आगंतुं पुच्छइ विणएण बंदिऊण तहा । देवाणुपिया ! तुम्भे के बुच्चह ? कीस वा अडह ?| ६. रंजियहियओ तत्तो अवालचरिएण तस्स भयवं पि । गोयमसामी पभणइ अम्हे समणा य निग्गंथा ७ १ भिक्खट्टा य अडामो भणियं तो तेण एह मह गेहं। दावेमि जेण भिक्खं गहिऊण करंगुलीह तओ॥८॥ * अइमुत्तएण नीओ गोयमसामी नरिंदभवणम्मि । तं तह दह्र तुहा तजणणी आगया समुहा ॥९॥ , तिपयाहिणीकरेत्ता वंदित्ता विउलअसणमाइहिं । पडिलाभिऊण वंदइ गोयमसामि तओ वलियं ॥१०॥

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