Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 6
________________ भी इस कार्य में सहयोग किया है। अतः उनको मेरा शुभाशीर्वाद है। मेरे द्वारा लिखित सभी ग्रन्थ श्री दिगम्बर जैन कुंथु विजय ग्रन्धमाला समिति, जयपुर से ही प्रकाशित होकर साधुओं एवं समाज के हाथों में जाते हैं। इस ग्रन्थ माला के प्रमुख कर्मठ कार्यकर्ता प्रकाशन संयोजक श्री शान्ति कुमार जी गंगवाल । है। जो निस्पृहता से निःस्वार्थ सेवा करते हैं। उनके सुपुत्र श्री प्रदीप कुमार जी, संजय कुमार जी भी बहुत सेवारत रहते हैं। इन्हीं के विशेष सहयोग से ग्रन्थमाला से अब तक 18 ग्रंथों का प्रकाशन हो सका है, और सभी ग्रंथ एक से बढ़कर एक सुन्दर आकर्षक एवं आगम ज्ञान से परिपूर्ण हैं। गंगवाल जी बैंक में सेवारत हैं और यह बहुत ही प्रसन्नता व गौरव की बात है कि समयाभाव होते हुए भी सर्व कार्य छोड़कर इतना महान कार्य कर सके हैं अत: गंगवाल जी और इनके सभी परिवार को मेरा बहुत-बहुत मंगलमय शुभाशीर्वाद है। ग्रंथमाला के सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को भी मेरा शुभाशीर्वाद है। ग्रन्थ प्रकाशन खर्च में जिन-जिन दातारों ने सहयोग किया है। उनको भी मेरा शुभाशीर्वाद है। यह ग्रंथ अष्टांग निमित्त ज्ञान का है, जो भी इसका उपयोग करे वह इसका अच्छी तरह से पहले अध्ययन करे, कई बार पढ़े, गुरु से पढ़े, तब ही उसकी समझ में आ सकता है, ज्योतिष ज्ञान में जो रुचि रखने वाला हो। जो व्यक्ति आचार्य लिखित बातों पर श्रद्धा रखने वाला हो, उसी के लिये यह ग्रंथ उपयोगी है, वही अच्छी तरह निमित्त ज्ञानी बन सकता है। साधुओं के लिये भी यह ग्रंथ उपयोगी है क्योंकि निश्चय ज्ञान के लिये व्यवहार ज्ञान भी परम आवश्यक है। अगर भद्रबाहु स्वामी को व्यवहार निमित्त ज्ञान मालूम नहीं होता तो 12 हजार साधुओं को लेकर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये दक्षिण भारत में क्यों जाते? वह तो श्रुत केवली थे, इसलिये साधुओं को इस ग्रंथ का ज्ञान अवश्य होना चाहिये। जिसको इसका ज्ञान है वही साधु देश, राष्ट्र, नगर, राजा, प्रजा का रक्षण करता हुआ अपने भी संयम का निर्दोश पालन कर सकता है। हमारे गुरुदेव आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी भी निमित्त ज्ञान के धारी थे जिनके जीवन में अनेक प्रकार की घटनाएं हैं और उन्होंने अपने

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