Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 8
________________ ऊपर मूल गाथा और बादमें हिन्दी पद्यानुवाद, गुजराती पद्यानुवाद, हिन्दी गद्यानुवाद एवं गुजराती गद्यानुवाद ऐसा अनुक्रम रक्खा है। हिन्दी पद्यानुवाद पूज्य आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज रचित है, जबकि गुजराती पद्यानुवादकी रचना लेखकद्वय ब्र. श्री चुनीलालजी देसाई एवं श्रद्धेय श्री आत्मानंदजी की हैं। इनमें हरिगीत छंद के रचयिता स्व.ब्र. श्री चुनीलालजी (राजकोट) और 'वसंततिलका के रचयिता इस प्रकाशक-संस्था के प्रेरक एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शक श्रद्धेय श्री आत्मानन्दजी (डो. सोनेजी) हैं। गुजराती गद्यानुवाद ब्र.श्री चुनीलालजी एवं श्री प्रकाशभाई शाह ने किया है। मूल ग्रन्थका प्रतिपाद्य विषय, जैसा कि उसके नामसे ही विदित होता है, वैराग्य है। यह वैराग्यका विषय जगतके समस्त साधकोंको अभिप्रेत है क्योंकि विवेकज्ञान/आत्मज्ञान/सम्यकत्व की उत्पत्ति उसके बिना संभव नहीं है। एक और विशेषता इस ग्रन्थकी यह है कि उसमें कोरा वैराग्य प्रतिपादित नहीं किया गया है। यद्यपि इस ग्रन्थकी उद्भूति एक महा वैराग्यवान् युगपुरुषसे हुई है, फिर भी उसमें जगह जगह वैराग्यरूप साधनसे प्राप्त करने योग्य शुद्ध-बुद्ध-चैतन्यघन-आनंदघन स्वभाववाला जो आत्म-तत्त्व, उसकी ओर लक्ष करनेकी, उसको ध्यानमें रखनेकी और उसीके साक्षात्कारके उद्यममें जागृत रहनेकी आज्ञा दी गई है, ताकि वैराग्यका सच्चा फल भी आत्माके अतीन्द्रिय आनन्दको प्राप्त करना ही है - यह द्रष्टि छूटने न पावे। हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रकाशक संस्थाकी नीतिके अनुरूप प्रगट हुई इस कृतिको पाठक-अभ्यासी-विद्वान-त्यागीगण स्वागत करेंगे और पुस्तकमें जो कुछ भी क्षतियां मालूम पडें तो उसकी ओर भी अंगुलिनिर्देश करेंगे जिससे कि अगले संस्करणमें उनको सुधारा जा सके। ऐसी भी भावना है कि अभी तक हमारे प्रकाशन (कुल संख्या लगभग २५), जो मुख्यरूपसे गुजराती माध्यमसे प्रकट हुए हैं, उनमें हिन्दी एवं अंग्रेजी प्रकाशन भी सम्मलित होंगे जिससे कि स्व-पर जीवनके बहुलक्षी विकासमें उपयोगी ये प्रकाशन विशाल पाठकगण तक सरलतासे पहुंच सकें। पूज्य आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराजने उनकी कृतिको प्रकाशित

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