Book Title: Baras Anupekkha Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj Publisher: Satshrut Sadhna Kendra View full book textPage 7
________________ प्रस्तावना सच्चे ज्ञान और वैराग्यके माध्यमसे देहदेवलमें स्थित आत्माके विकासको सिद्ध करके शाश्वत अतीन्द्रिय आनंदको प्राप्त करनेकी परम्परा हमारे देशमें अति प्राचीन कालसे सुचारु रीतिसे चली आयी है । तीर्थकरोने, ऋषि-मुनियोंने और संतोने इसी मार्ग पर चलकर जीवनके चरम लक्ष्य को सिद्ध करनेका दिव्य, महान, आश्चर्यकारक एवं अनुपम पराक्रम किया है। उन्हींके द्वारा दिग्दर्शित पावन पथ पर चलकर आज भी साधकगण अपने जीवनको दिव्य ज्ञान और अतीन्द्रिय आनंदकी ओर अग्रेसर कर रहे हैं। वैराग्यभावकी उत्पत्ति, संरक्षण एवं संवर्धनको लक्ष्यमें रखकर श्रमण परम्परामें बारह भावनाओंका बहुत बड़ा महत्त्व है। प्राग्-ऐतिहासिक कालसे लेकर प्राचीनयुगमें, मध्ययुगमें एवं अर्वाचीन युगमें महान आचार्योने, सन्त-ज्ञानी पुरुषोंने एवं विद्वानोंने कोडीबद्ध उत्तम रचनाएं गद्य-पद्य मय शैलीमें की है । दोनों आम्नायोंके आगम-ग्रन्थोंमें, तत्वार्थसूत्रकी सभी मुख्य टीकाओंमें, मध्ययुगीन आचार्योंके ग्रन्थोंमें, पूजाग्रन्थोंकी जयमालाओंमें तथा अर्वाचीन युगमें प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी और प्रान्तीय भाषाओंमें लिखित रचनाओंकी संख्या एक शतकसे भी अधिक होगी। मूलग्रन्थोंके भागरूप होनेसे बारह भावनाएं ऐसे तो प्रचुर मात्रामें पढी जाती हैं फिर भी पृथकरूपसे पढी जानेवाली और विशेष प्रचलित एवं लोकप्रिय रचनाएं श्री स्वामिकार्तिकेयकी, श्री कुन्दकुन्दाचार्यकी, श्री उमास्वातिके प्रशमरतिप्रकरणकी, श्री विनयविजयजीकी एवं पंडित भूधरदासजीकी रही हैं। प्रस्तुत पुस्तिकामें आचार्यप्रवर, अध्यात्मविद्याविशारद श्री कुन्दकुन्दस्वामीकी रची हुई बारह भावनाओंको प्रस्तुत कर रहे हैं। उन महापुरुषका मानवमात्र | पर महान उपकार है, क्योंकि शाश्वत आनन्दकी प्राप्तिका मार्ग उन्होंने अपनी अनुभव वाणीसे हम सबके सामने प्रस्तुत किया है। उनकी २००० वीं जन्मजयन्तिमहोत्सवके उपलक्ष्यमें उनकी यह कृति उन्हींके पावन चरणकमलोंमें समर्पित करते हैं। इस लघुकृतिमें प्रत्येक पृष्ठ पर एक एक गाथा अवतरित की है। सबसेPage Navigation
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