Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 10
________________ अन्तर्यात्रा के लिए आमन्त्रण प्रत्येक व्यक्ति परमात्म-चेतना का मालिक है। परमात्मा के प्रति हमारा दृष्टिकोण लोकतांत्रिक होना चाहिए। परमात्मा पर किसी का एकाधिकार नहीं है। हर व्यक्ति परमात्मा होने की क्षमता रखता है। 'अप्पा सो परमप्पा'- जो आत्मा वही परमात्मा। हर व्यक्ति परमात्मा है। अपने स्वभाव से स्खलित हो जाने के कारण ही व्यक्ति परमात्मा से अलग हुआ है। स्वभाव में स्थिरता, स्वभाव में स्थिति ही परमात्मा होना है। परमात्मा अस्तित्व का पर्याय है। वह सदा ही उपस्थित है। क्षुद्र से क्षुद्र जीव में भी उसकी ज्योति है। किसी से पूछो, भगवान है? वह कहेगा- मुझे ज्ञात नहीं है। क्यों? इसलिए कि उसे देख सकें, ऐसी आँख नहीं है। सम्यक् दृष्टि उपलब्ध हो जाये, तो जीवन का हर रहस्य स्पष्ट हो जाये।अंधा सूरज को खोजना चाहे, तो उसकी यह तलाश ही व्यर्थ है। सूरज कहीं खोया नहीं है, आँख चाहिये। आँखों में, चेतना में परिवर्तन चाहिये। हमारी आन्तरिक गहराई में, हमारी विशुद्ध अध्यात्म-चेतना में परमात्मा की सुवास आस्वाद देगी। इसलिए खोजना है तो आँखें खोजो। प्रयास वे हों, जिनमें आँख खुल जाये, चेतना की आँख, बोध की आँख। अप्पा सो परमप्पा'आत्मा वही, जो परमात्मा हो जाए। मनुष्य की आत्मा की तीन अवस्थाएँ हैं- बहिआत्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। जब मनुष्य अपनी वासना/कामना/ इच्छा के बहाव में बहकर परवस्तु पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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