Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ 5.ru श्रीवीतरागाय नमः बड़ा जैन-ग्रन्थ-संग्रह पहिला भाग । रत्नकरण्ड श्रावकाचार, हिन्दी - पद्यानुवाद | ( पं० गिरधर शर्मा कृत ) पहिला परिच्छेद । सकल कर्ममल जिनने धोये, हैं वे वर्द्धमान भगवान । लोकालोक भासते जिसमें, ऐसा दर्पण जिनका ज्ञान ॥ बड़े चाव से भक्तिभावसे; नमस्कार कर वारंवार | उनके श्रीचरणों में, प्रणमूं, सुख पाऊँ हर विघ्न - विकार ॥ १ ॥ जो संसार दुःखसे सारे जीवों को सु बचाता है । सर्वोत्तम सुखमें पुनि उनको, भलीभांति पहुँचाता है ॥ उसी कर्मके काटनहारे, श्रेष्ठधर्मको कहता हूँ । श्रीसमन्तभद्रार्यवर्यका, भाव बताना चहता हूँ ॥२॥ धर्म किसे कहते हैं । · गणधरादि धर्मेश्वर कहते, सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञानसम्यक्चारित धर्मरम्य हैं, सुखदायक सब भांति निदान ॥ इनसे उलटे मिथ्या हैं सब, दर्शन ज्ञान और चारित्र । भव कारण हैं भय कारण हैं, दुख कारण हैं मेरे मित्र ॥३॥ सम्यग्दर्शन का लक्षण | आठ अंगयुत, तीन मूढ़ता रहित, अमद जो हो श्रद्धान ।. सच्चे देव शास्त्र गुरु पर दृढ़, सम्यग्दर्शन उसको जान ॥ सच्चे देव शास्त्र गुरुका मैं, लक्षण यहाँ बताता हूँ । तीन मूढ़ता आठ अंग-मद, सबका भेद बताता हूं ॥४॥ •

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 116