Book Title: Ayogvyavacched Dwatrinshika Author(s): Vijaypradyumnasuri Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha View full book textPage 6
________________ कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्य विरचित अतएव श्रीआत्मारामजीमहाराज कृत हिन्दी अनुवाद सहित अथ अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका द्वितीयस्तंभमें यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेवका किंचिन्मात्र स्वरूप लिखा. अथ तृतीयस्तंभमें तिन यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेवमें जे जे अयोग्य बातें हैं, तिनके अयोग व्यवच्छेदरूप श्रीमन्महावीरस्वामी स्तोत्र लिखते हैं । इहां निश्चय विषमदुःषमअररूप रात्रितिमर के दूर करनेकों सूर्यसमानने, और पृथिवीतलमें अवतार लेके अमृतसमान धर्मदेशनाके विस्तारसें परमार्हत हुआ श्री कुमारपाल भूपालसें प्रवर्तित कराई अभयदान जिसका नाम ऐसी संजीविनी औषधिकरके जीवित करे नाना जीवोंने दीनी आशीर्वादरूप महात्म्यकल्प अर्थात् पंचम आरेपर्यंततांइ स्थिर रह नेहारा स्थिर करा है विशद (निर्मल) यश:शरीरकरके जिन्होंने, और चातुरविद्यके निर्माण करनेमें एक ब्रह्मारूप श्रीहेमचन्द्रसूरिने, जगत्में प्रसिद्ध श्रीसिद्धसेनदिवाकरविरचित बत्तीस बत्तीसियोंके अनुसारि श्रीवर्धमानजिनकी स्तुतिरूप, अयोग-व्यवच्छेद और अन्य योगव्यवच्छेद नाम कियां दो बत्तीसियां पंडितजनोंके मनके तत्त्वबोध हेतुभूत रचीयां है. तिनमेंसें, प्रथम द्वात्रिंशिका गमार्थरूप है, इसवास्ते इसकी व्याख्या नही करते हैं, ऐसें श्री मल्लिषेणसूरि महाराज कहते हैं. परंतु इस कालके हमारे सरीखे मंदबुद्धियोंकों तो, प्रथम द्वात्रिंशिकाका अर्थ जानना बहुतहीPage Navigation
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