Book Title: Ayogvyavacched Dwatrinshika
Author(s): Vijaypradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 29
________________ २४ अयोगव्यवच्छेदः ईश्वर विषयक ऋचा हैं, वे प्रक्षेप कर दीनी है; और यजुर्वेदादिकोंमें 'सहस्रशीर्षः सहस्रपात्' तथा 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे' इत्यादि तथा 'इशावास्य' इत्यादि; तथा चारवेद ईश्वरसें उत्पन्न हुए हैं, तथा चार वेद हिरण्यगर्भ के उत्स्वास रूप है इत्यादि श्रुतियां ईश्वर विषयक वेदोंमें प्रक्षेप करके वेदोंकों ईश्वरके रचे हुए सिद्ध करे; पीछे तिन वेदोंके मूल पाठमें भेदवालीयां हजारां शाखा और शाखाके सूत्र रचे गए, तदनंतर यास्काचार्यादिकोंने निघंटु निरुक्तादि रचके वेदोंके शब्दोंके अर्थोमें गडबड करीदीनी, 'यथा अग्निमीळे (ले)' इत्यादिमें, 'अग्निर्वै विष्णुः' इत्यादि । और कुमारिल मीमांसाके वार्त्तिककारनेभी, प्राचीन अर्थोमें बहुत गडबड करी है; तथा वेद रचनाके पहिलें निरीश्चरी सांख्य मत था; पीछे नवीन सांख्य मतवाले उत्पन्न हुए, तिनोंने सेश्वर सांख्यमत प्रगट करा; पीछे सांख्य मतके अनुसार ऋषियोंने वेदांत अद्वैत ब्रह्म के स्वरूपके प्रतिपादक पुस्तक रचे, तिनोंका नाम उपनिषद् रक्खा; प्रकृतिको जगे मायाकी कल्पना करी, और तीन गुणादि २४ चौवीस तत्वोंके नाम वेही रक्खे, परंतु तिनकों माया करके कल्पित ठहराए; और प्रमाण भट्ट मतानुसारि मानलीए. और उपनिषद् नामक ग्रंथ तो इतने रच लिए कि, जिसने अपना नवीन मत चलाया, तिसकी सिद्धिके वास्ते नवीन उपनिषद् रचके प्रसिद्ध करी; जैसे रामतापनी, गोपालतापनी, हनुमतोपनिषद्, अल्लोपनिषद्, इत्यादि पीछे तिनके भाष्यादि रचे गए । शंकर स्वामीने दश उपनिषदों ऊपर, गीता ऊपर, और विष्णुसहस्र, नामादि ऊपर भाष्य रचे; तिनोंने प्राचीन अर्थोकों व्यवच्छेद करके नवीनही तरेके अर्थ रचे; तिस भाष्यके ऊपर टीकाकारोंने शंकरकी भूलें सुधारनेकों टीका रची। पुराण, और स्मृतिनामक

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