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तत्त्वनिर्णय प्रासादे सिद्ध है। और अप्रीतिलक्षणद्वेषभी पूर्वोक्त देवोंमें सिद्ध है। क्योंकि, जो शस्त्र रखेगा सो यातो वैरीके भयसें अपनी रक्षाकेवास्ते रखेगा, यातो अपने वैरियोंको मारने वास्ते रखेगा; शंकर धनुष, बाण, त्रिशूलादि; और विष्णु चक्र, धनुष बाण, गदादि; और ब्रह्मादि तीनो देवोंने अनेक पुरुषोंकों शाप दिये महाभारतादि ग्रंथों में प्रसिद्ध है; और शंकर विष्णुने अनेक जनोंके साथ युद्ध करे है; इत्यादि अनेक हेतुयोंसें, तीनो देव, द्वेषी सिद्ध होते हैं। और मोह, अज्ञानभी, तीनो देवादिक परतीर्थनाथोंने स्वीकार करा है। क्योंकि, जपमाला रखनेसें अज्ञानी सिद्ध होते है, जपमाला जपकी गिणती वास्ते रखते हैं, जपमालाविना जपकी गिणती (संख्या) न जाननेसें, अज्ञानिपणा सिद्ध है। और महाभारत, रामायण, शिवपुराणादि ग्रंथोके कथनसें, तीनो देव, अस्मदादिकोंकी तरह अज्ञानी सिद्ध होते हैं जैसें, शिव के लिंग का अंत ब्रह्मा विष्णुकों न मिला, इत्यादि अनेक उदाहरण है। तिससें, तीनो देव अज्ञानी सिद्ध होते हैं। तथा हास्य रति, अरति, भय, जुगुप्सा, शोक, काम, मिथ्यात्व, निद्रा, अविरति, पांच विघ्नादि दूषणभी, तीनो देवादिकों में तिनके कथनकरे शास्त्रोंसे ही सिद्ध होते हैं। ___ इस वास्ते मानूं हे जिनेंद्र ! तीनो देवोंने तेरी ईर्षा करकेही पूर्वोक्त दूषण अंगीकार करे हैं। यह प्रायः जगत्में प्रसिद्धही है कि, जो निर्द्धन धनाढ्यका स्पर्धा, जब धनाढ्य की बराबरी नही कर सक्ता है, तब धनाढ्य की ईर्षासें विपरीत चलना अगीकार करता है। तैसेंही, परतीर्थनाथोंने हे भगवन् ! तेरेकों सर्व दूषणोंसे रहित देखके तेरी ईर्षासें ही मानूं सर्व दूषण कृतार्थ करे हैं, यह मेरेकों बडा ही आश्चर्य है। ॥ ४ ॥ __ अथ स्तुतिकार भगवंतमें असत् उपदेशकपणे काव्य वछेद करते हैं।