Book Title: Ayogvyavacched Dwatrinshika
Author(s): Vijaypradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 15
________________ १० अयोगव्यवच्छेदः जानना तिसका नाम सम्यग्ज्ञान है; और सत्तरें भेदें संयम का पालना तिसका नाम सम्यक्चारित्र है; इन तीनोंका एकत्र समावेश होना तिसका नाम मोक्षमार्ग है; जड, और चैतन्यका जो प्रवाहसें मिलाप है, सो संसार है; यह संसार प्रवाहसें अनादि अनंत है, और पर्सयोंकी अपेक्षा क्षण विनश्वर है, इत्यादि वस्तुका जैसा स्वरूप था, तैसाही, हे जिनाधीश! तैंने कथन करा है, ऐसे कथन करनेसें तैंने कोई नवीन कुशलता-चातुर्यता नही प्राप्त करी है। क्योंकि, जेसें अतीतकालमें अनंत सर्वज्ञोंने वस्तुका स्वरूप यथार्थ कथन करा है, तैसाही तुमने कथन करा है, इस वास्ते, (तुरंगशृंगाण्युपपादयद्भयः) घोडेके शृंग उत्पन्न करनेवाले (परेभ्य:नवपंडितेभ्यः)पर नवीन पंडितों के तांइ (नमः) हमारा नमस्कार होवे, अर्थात् जिनोंने तुरंगशृंग समान असत् पदार्थ कथन करके जगत्वासी मनुष्यांको मिथ्यात्व अंधकार संसारकी वृद्धि के हेतुभूत मार्गमें प्रवत्तन कराया है, तिनोंकेतांइ हम नमस्कार करते हैं। ते तुरंगशृंग समान पदार्थ यह है। एकही ब्रह्म है, अन्य कुछभी नही है, १. पूर्वोक्त ब्रह्म के तीन भाग सदा ही निर्मल है और एक चौथा भाग मायावान् है, २. ब्रह्म सर्वव्यापक है, ३: सक्रिय है, ४. कूटस्थ नित्य है, ५. अचल है, ६. जगत्की उत्पत्ति करता है, ७. जगत् का प्रलय करतत है, ८. ऊर्णनाभकीतरें सर्व जगत् का उपादान कारण है, ९. सदा निर्लेप सदा मुक्त है, १०. यह जगत् भ्रममात्र है, ११. इत्यादि तो वेद और वेदांत मतवालोंने तुरंगभंग समान वस्तुयोंका कथन करा है । ___और सांख्य मतवालोंने एक पुरुष चैतन्य है, नित्य है, सर्वव्यापक है, एक प्रकृति जडरूप नित्य है, तिस प्रकृतिसें बुद्धि उत्पन्न होती है, बुद्धि सें अहंकार, अहंकार सें षोडशकागण, पांच ज्ञानेंद्रिय (पांच कर्मेद्रिय, इग्यारमा मन, और पांच तन्मात्र, एवं षोडश) पांच तन्मात्रसें पांच भूत एवं सर्व, २५ प्रकृति जडकर्ता है,

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