Book Title: Ayodhya ka Itihas
Author(s): Jeshtaram Dalsukhram Munim
Publisher: Jeshtaram Dalsukhram Munim

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Page 4
________________ प्रस्तावना . . संसार को सर्व- प्रधान और पुरातनी राष्ट्रभाषा संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थ पढने से निःसङ्कोच कहा जा सकता है कि जैनधर्म बहुत पुराना है। यद्यपि सनातन-धर्मके अन्थोंके अनुसार यह नास्तिक- धर्म माना जाता है किन्तु मूर्तिपूजा इसका आस्तिक्य द्योतित करती है। भलेही उसका ध्येय कुछ और हो । यही कारण है कि जैनसम्प्रदायावलम्वी आज हिन्दुओं में परिगणित होते हैं। हमारा विश्वास है कि किसी समुदाय की उन्नति का कारण उसको आग्यन्तरिक सत्यता अवश्य है, भले ही वह आकर्षक वस्तु मों से आच्छन्न होकर उसकी माकर्षण शक्ति को द्विगुणित कर रही हो, क्योंकि अन्तः समाकर्षणके विना विशिष्ट समुदाय समुदायान्तर मे सद्यः सन्निविष्ट नहीं होता जैन इतिहास के पढ़ने और मनन करने से बोध होता है कि उसे स्वल्पबुद्धियों ने ही न अपनाया था अपि तु अनल्पमेधामों ने भी । यद्यपि वलसे अधिक स्थानका प्राधान्य माना गया है ता भी चिरकालतक सत्पात्रमे रहने वाले पदार्थ में भी भैयंशक्ति का आधिक्य बहरली चोलिक्षिा

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