Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 21
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates विषय निर्वाण की प्राप्ति किस द्रव्य के ध्यान से होती है जो मोक्ष प्राप्त कर सकता है उसे स्वर्ग प्राप्ति सुलभ है इसमें दृष्टांत स्वर्ग मोक्ष के कारण परमात्मस्वरूप प्राप्ति के कारण और उस विषय का दृष्टांत दृष्टांत द्वारा श्रेष्ठ अश्रेष्ठ का वर्णन आत्मध्यान की विधि ध्यानावस्थामें मौनका हेतुपूर्वक कथन योगी का कार्य कौन कहाँ सोता तथा जागता है। ज्ञानी योगीका कर्तव्य ध्यान अध्ययनका उपदेश आराधक तथा आराधनाकी विधिके फल का कथन आत्मा कैसा है योगी को रत्नत्रयकी आराधनासे क्या होता है आत्मामें रत्नत्रय का सदभाव कैसा प्रकारान्तर से रत्नत्रयका कथन सम्यग्दर्शनका प्राधान्य सम्यग्ज्ञान का स्वरूप सम्यक्चारित्र का लक्षण परम पद को प्राप्त करने वाला कैसा हुआ होता है कैसा हुआ आत्मा का ध्यान करता है। कैसा हुआ उत्तम सुख को प्राप्त करता है कैसा हुआ मोक्ष सुखको प्राप्त नहीं करता जिनमुद्रा क्या है परमात्माके ध्यानसे योगीके क्या विशेषता होती है। जीव के विशुद्ध अशुद्ध कथन में दृष्टांत सम्यक्त्व सहित सरागी योगी कैसा कर्मक्षय की अपेक्षा अज्ञानी तपस्वी में विशेषता अज्ञानी ज्ञानी का लक्षण ऐसे लिंग ग्रहण से क्या सुख सांख्यादि अज्ञानी क्यों और जैन में ज्ञानित्व किस कारण से ज्ञानतप की संयुक्तता मोक्ष की साधक है पृथक् पृथक् नहीं स्वरूपाचरण चारित्र से भ्रष्ट कौन ज्ञानभावना कैसी कार्यकारी है किनको जीतकर निज आत्माका ध्यान करना ध्येय आत्मा कैसा Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com पृष्ठ २८२ २८३ २८४ २८५ २८५ २८६ २८७ २८८ २८९ २९० २९० २९१ २९२ २९२ २९३ २९३ २९४ २९४ २९४ २९७ २९८ २९९ ३०० ३०० ३०१ ३०२ ३०४ ३०४ ३०५ ३०६ ३०८ ३०९ ३०९ ३११ ३११ ३१२ ३१२

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