Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 19
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पृष्ठ २२२ २२२ α α α २२४ २२५ २२६ २२६ २२७ २२९ २३० २३० विषय लगे हुए दोषोंको गुरुके सन्मुख प्रकाशित करने का उपदेश क्षमा का उपदेश क्षमाका फल क्षमा के द्वारा पूर्व संचित क्रोधके नाशका उपदेश दीक्षाकाल आदि की भावना का उपदेश भावशुद्धिपूर्वक ही चार प्रकार का बाह्य लिंग कार्यकारी है भाव बिना आहारादि चार संज्ञाके परवश होकर अनादिकाल संसार भ्रमण होता है भावशुद्धिपूर्वक बाह्य उत्तर गुणोंकी प्रवृत्तिका उपदेश तत्त्व की भावना का उपदेश तत्त्व भावना बिना मोक्ष नहीं पापपुण्यरूप बंध तथा मोक्षका कारण भाव ही है पाप बंध के कारणों का कथन पुण्य बंध के कारणों का कथन भावना सामान्यका कथन उत्तर भेद सहित शीलव्रत भानेका उपदेश टीकाकर द्वारा वर्णित शीलके अठारह हजार भेद तथा चौरासीलाख उत्तर गुणों का वर्णन, गुणस्थानों की परिपाटी धर्मध्यान शुक्लध्यानके धारण तथा आतरौद्रके त्याग का उपदेश भवनाशक ध्यान भावश्रमण के ही है ध्यान स्थिति में दृष्टांत पंचगुरुके ध्यावने का उपदेश ज्ञानपूर्वक भावना मोक्षका कारण भावलिंगी के संसार परिभ्रमण का अभाव होता है भाव धारण करनेका उपदेश तथा भावलिंगी उत्तमोत्तम पद तथा उत्तमोत्तम सुख को प्राप्त करता है भावश्रमण को नमस्कार देवादि ऋद्धि भी भावश्रमण को मोहित नहीं करतीं तो फिर अन्य संसार के सुख क्या मोहित कर सकते हैं जब तक जरारोगादि का आक्रमण न हो तब तक आत्मकल्याण करो अहिंसा धर्मका उपदेश चार प्रकार के मिथ्यात्वियोंके भेदोंका वर्णन अभव्य विषयक कथन मिथ्यात्व दुर्गति का निमित्त है तीन सौ त्रैसठ प्रकारके पाखंडियोंके मत को छुड़ानेका और जिनमत में प्रवृत्त करने का उपदेश है सम्यग्दर्शनके बिना जीव चलते हुए मुर्दे के समान है, अपूज्य है सम्यक्त्व की उत्कृष्टता २३३-२३६ २३६ २३७ २३८ २४० २४१ २४२ २४२ २४४ २४४ २४६ २४८ २५० २५१ २५२ २५२ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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