Book Title: Ashtapahuda
Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 18
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पृष्ठ १९६ १९६ १९७ १९८ १९८ २०४ विषय भाव बिना पठन श्रवण कार्यकारी नहीं बाह्य नग्नपने से ही सिद्धि हो, तो तिर्यंच आदि सभी नग्न हैं भाव बिना केवल नग्नपना निष्फल ही है पाप मलिन कोरा नग्न मुनि अपयश का ही पात्र है भावलिंगी होनेका उपदेश भावरहित कोरा नग्न मुनि निर्गुण निष्फल जिनोक्त समाधि बोधी द्रव्यलिंगी के नहीं भावलिंग धारण कर द्रव्यलिंग धारण करना ही मार्ग है शुद्धभाव मोक्षका कारण अशुद्धभाव संसार का कारण भावके फलका महात्म्य भावोंके भेद और उनके लक्षण जिनशासन का महात्म्य दर्शनविशुद्धि आदि भावशुद्धि तीर्थंकर प्रकृति के भी कारण हैं विशुद्धि निमित्त आचरणका उपदेश जिनलिंग का स्वरूप जिनधर्म की महिमा प्रवृत्ति निवृत्तिरूप धर्मका कथन, पुण्य धर्म नहीं है, धर्म क्या है ? पूण्य प्रधानताकर भोगका निमित्त है। कर्मक्षय का नहीं मोक्षका कारण आत्मीक स्वभावरूप धर्म ही है आत्मीक शुद्ध परिणति के बिना अन्य समस्त पुण्य परिणति सिद्धि से रहित हैं आत्मस्वरूपका श्रद्धान तथा ज्ञान मोक्षका साधक है ऐसा उपदेश बाह्य हिंसादि क्रिया बिना सिर्फ अशुद्ध भाव भी सप्तम नरक का कारण है उसमें उदाहरण-तंदुल मत्स्यकी कथा भाव बिना बाह्य परिग्रहका त्याग निष्फल है भाव शुद्धि निमित्तक उपदेश भाव शुद्धिका फल भाव शुद्धिके निमित्त परिषहों के जीतने का उपदेश परीषह विजेता उपसर्गों से विचलित नहीं होता उसमें दृष्टांत भावशुद्धि निमित्त भावनाओं का उपदेश भावशुद्धि में ज्ञानाभ्यास का उपदेश भावशुद्धिके निमित्त ब्रह्मचर्य के आरम्भका कथन भावसहित चार आराधनाको प्राप्त करता है, भावसहित संसार में भ्रमण करता है भाव तथा द्रव्यके फल का विशेष अशुद्ध भाव से ही दोष दुषित आहार किया, फिर उसी से दुर्गतिके दुःख सहे सचित्त त्याग का उपदेश पंचप्रकार विनय पालन का उपदेश वैयावृत्य का उपदेश २०५ २०६ २०७ २०८ २०८ २०९ २०९ २१० २१६ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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