Book Title: Ashtapahuda Author(s): Kundkundacharya, Mahendramuni Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir TrustPage 16
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अरहंत के भावका विशेष विवेचन प्रवज्या (दीक्षा) कैसे स्थान पर निर्वाहित होती है तथा उसका धारक पात्र कैसा होता १३२-१३६ १३६ १३७-१४२ १४२ १४२-१४६ १४६ १४७ १४९ १५४ १५४ सम्यक्त्व सहित चारित्र धारक स्त्री शुद्ध है पाप रहित है दीक्षाका अंतरंग स्वरूप तथा दीक्षा विषय विशेष कथन दिक्षा का बाह्यस्वरूप, तथा विशेष कथन प्रवज्याका संक्षिप्त कथन बोधपाहुड (षट्जीवहितकर) का संक्षिप्त कथन सर्वज्ञ प्रणीत तथा पूर्वाचार्यपरंपरागत-अर्थका प्रतिपादन भद्रबाहुश्रुतकेवलीके शिष्यने किया है ऐसा कथन श्रुतकेवली भद्रबाहुकी स्तुति ५. भावपाहुड जिनसिद्धसाधुवंदन तथा भावपाहुड कहने की सूचना द्रव्यभावरूपलिंगमें गुण दोषोंका उत्पादक भावलिंग ही परमार्थ है बाह्यपरिग्रहका त्याग भी अंतरंग परिग्रहके त्यागमें ही सफल है करोडों भव तप करने पर भी भावके बिना सिद्धि नहीं भावके बिना (अशुद्ध परिणतिमें) बाह्य त्याग कार्यकारी नहीं मोक्षमार्ग में प्रधानभाव ही है, अन्य अनेक लिंग धारने से सिद्धि नही अनादि काल से अनंतानंत संसार में भावरहित बाह्यलिंग अनंतबार छोड़े तथा ग्रहण किये हैं भावके बिना सांसारिक अनेक दुखोंको प्राप्त हुआ है, इसलिये जिनोक्त भावना की भावना करो नरकगति के दुःखोंका वर्णन तिर्यंच गति के दुःखोंका वर्णन मनुष्य गति के दुःखोंका वर्णन देचगति के दुःखोंका वर्णन द्रव्यलिंगी कंदी आदि पांच अशुभ भावनाके निमित्तसे नीच देव होता है कुभावनारूप भाव कारणोंसे अनेकबार अनंतकाल पार्श्वस्थ भावना भाकर दुःखी हुआ हीन देव होकर महर्द्धिक देवोंकी विभूति देखकर मानसिक दुःख हुआ मदमत्त अशुभभावनायुक्त अनेक बार कुदेव हुआ गर्भजन्य दुःखोंका वर्णन जन्म धारणकर अनंतानंत बार इतनी माताओंका दूध पीया कि जिसकी तुलना समुद्र जल से भी अधिक है अनंतबार मरण से माताओंके अश्रुओंकी तुलना समुद्र जल से अधिक है अनंत जन्म के नख तथा केशोंकी राशि भी मेरू से अधिक है जल थल आदि अनेक तीन भुवनके स्थानोंमें बहुत बार निवास किया जगतके समस्त पुद्गलोंको अनन्तबार भोगा तो भी तृप्ति नहीं हुई १५५ १५५ १५६ १५७ १५७ १५८ 0 0 . mr m my Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.comPage Navigation
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