Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Kishanlal Dwarkaprasad

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Page 5
________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Nerming vinsnusun RUAUAYAYAURIYAYRLAYGUR निवेदन। 046382 gyanmandir@kobatirth.org AURUAURIRURYABRYALABRURURAYRAGUGUALIS में उस सर्वशक्तिमान परमात्मा को धन्यवाद देता हूं जिसने अपनी १ अपार कृपासे आज वह दिन दिखाया है, जिसको में खपुष्पवत् समझता कथा जिसके लिये केवल स्वप्नदर्शन का सा आभास होता था । चरक संहिता और सुश्रुतसंहिता का अनुवाद छपजाने के पश्चात् कई दैवी दुर्घटना ऐसी होगई, जिनसे संसार शून्यवत् प्रतीत होने लगा, मेरी 5 लेखनी भी थकित और उत्साह भंग होकर गाढ निद्रा में प्रलीन होगई । परंतु इस दशा में बैठे बैठ जी और भी अधिक बेचैन हो उठा तब अपनी चिरजात इच्छा को पूरी करने के लिये संकल्प करके 'अष्टांगहृदय' का अनुवाद करने में प्रवृत हुआ । वह इच्छा भगवत्कृपा से आज पूर्ण हुई। चरक सुश्रुत वाग्भटादि ग्रंथों के विषय में कुछ लिखना वा उनकी प्रशंसा से पत्र के पत्र भरदेना सूर्य को दीपक दिखाना है, क्योंकि पठित आर्यसतान कोई भी ऐसी न होगी जो इनके नामसे, वा इनके गुण से परचित न हो, रहा अनुवाद, उसकी तारीफ करना अपने मुंह मियां मिळू बननाहै. उसका गुण दोष तो विद्वानों के हाथों में पहुंचने पर ही विदित होगा, क्योंकि स्वर्ण की परीक्षा कसौटी पर ही होती है । अब सब सज्जन महाशयों से यही प्रार्थना है कि आप इसको ग्रहण कर अन्य ग्रंथों के प्रकाश करने में भी मेरा उत्साह बढायेंगे । AYRURURYALAYALGPAGAYRYGER GRLAYRUQYAYAYAYGUAN आपका श्रीकृष्णलाल पुस्तक मिलने का पतापं० श्रीधरशिवलाल जी किशनलालद्वारका प्रसाद | লালমাল মষ। बंबईभूषण छापाखाना मथुरा (यू. पी.) TURURAYALAURLAAYRALAUALARYA; For Private And Personal Use Only

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