Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher: 

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घुसामान्यंगात्वंप्रसरतिसारव्यकुत्तस्त्वमेवमाक्षिपसिचेद्यस्मान्मांविहायसवैषांपालनंकरोतीत्या र्थः यहाविशेषंगवादिसमूहांतपातिनंमामेकंपरित्यज्यसामान्यंगात जातिः सर्वत्रस्फुरतिदिन तर्हिकुत्तोनपासीत्यर्थः॥ // ननुत्वमपराध्यसिअतस्तवापेक्षेतिचेतदर्थवदति यदीति यदिए, यदिपुनरपराधानांकोटिभिरंतर्विषादमायासि॥पत्ता डितापिबालेरुण्यतिकिमितीहमानुषीजननी // 9 // नर्ममापराधानामविनयानांकोरिभिसमूहे अंतर्विषादंमनसिको,समायासिनेदमुचितंतवस्या लुवादित्यर्थः हेरामपातलोकेपि बाले जननीपत्ताडित्तापिपाहतापिकिरुष्यतिअपितुबहु शस्तष्यतिरुपाभरेणस्तनपानादिकारयत्येवमानुषीसतीलंतुदेवोसीत्यतउपेक्षाकरणवत्तयिनोचिनमि, तिभाव For Private And Personal Use Only

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