Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher: 

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आभक्त्यानभजामि अथचस्वकीम्मभिलषितमिच्छामिवांछामिबाढमत्यर्थहारवेदेकष्टंसंकेशमूटनेव / | सटी. 24 मेअज्ञतैवैषाममेति॥६४॥इदानीसकलदोषनिचयसंपन्नमपिस्वायमितिमत्तारुपांकरोषिकेत्तवा त्यंतक्षमेत्याशयेनाह दुर्वृत्तमिति दुर्वृत्तंदुर्बुद्धिकुमतिकामादिवशंकामकोधलोभमोहमयंभवति नाराधितोसिपूर्वकचिदपिनाराधयामिचेदानीं॥इच्छामिचसमिष्टंक टंहासूढतैवमेबाढम्॥ ६४॥दुर्वृत्तंदुर्बुडिंकामादिवशंपराङ्सरवंभ वति॥ पालयसिमाययेषाराघवभवतःक्षमोच्चकैर्जयति॥६५॥ परांमुसंस्वामिनिविमुरवमित्त्यादिदोषगणमुक्तमेतादृशंमाराघवयदिपालयसित्तर्हि भवनःस्वामिनः // 24 उच्चकैःसवेत्तिष्टाक्षमाजयतिसर्वोत्तमासहप्तेतिभावः॥६५॥ // 7 // For Private And Personal Use Only

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