Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher: 

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सी . मुआ र्जितमित्यर्थः। हेअंडजमंडनवाहनचंडीशचापदंडमिवधनुरिवरवंडयभंजय॥५॥पुनरपिप्रकारां २-तरेणस्तोति ननुकुंठित्तगतीतवमहान्हर्षस्ताहिकुंठितगतिमेवकुर्वित्याह निपानि निभूपीकतनी राजकंसंपादितंभूतलंक्ष्मातलंयेनतादृशमथचार्जुनयशससहस्रार्जुनकीर्तरंतनाशकएतादृशं निर्भूपीकत्तभूतलमर्जुनयशसांतकंसकंपस्य॥ कुरुदैन्यमेलकमेक्कंठितगतिमीशजामदग्न्यमिव॥७६|| जामदम्यमिवमेदैन्यमेलकंदारिद्युकुंठितगतिमकार्यक्षमंकुरुसंपादय इशदैन्यनिराकरणमित्य र्थः॥५६॥ पुनरपिरूपकांतरणप्रार्थनांकरोति हेरामयदिवनप्रवेशेऽतिहर्षस्तवत्तर्हिवनप्रवेशमेव कुर्पित्याशयेनाह मृगजलेति मृगजलबुदिध्याबुद्धिरन्यथाभासपातयासमडव्याप्तनिदा 28 For Private And Personal Use Only

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