Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher: 

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इरानीत्वयैववाच्यंसेवांविनामयाकस्यापिकिमपिनदीयतइतिचत्तदर्थवदनि सेवामिति सेवाम पेक्ष्यदातासेवांगृहीत्वाददातिसदानानभवतिकिंतुवेतनाराना येतनामयस्ययारशीसेवानामपे श्यतस्यताक्रमादिदानमितिवेतनशब्दार्थः तस्मादातृतकिनामेत्याकांक्षायांवदति सेवाहीनति सेवाहीनेरीनेसेवारहि तेअनाथेयः ददानिसदाता तबदृष्टांतः यथापल्वलेअरवाताल्पसरोवरेसेवा सेवामपेक्षदातानाहिदाताकिंतुवेतनादाता॥सेवाही नेदीनेपल्बलइवदेहिजीवनंघनवत् // 14 // 5 होनेकशेपिघनःजीवनंप्रयच्छति तहत्तवापिममसेवामनपेक्ष्यैवरूपाविधेयेतिभावः॥१४॥ स्वामिभिरेवंवक्तव्यंतवपूर्वजैसेवयैवमत्तः किंचित्प्राप्तमितितवापिसेवापेक्ष्यते तोवदति से वकवंशभवत्वादिति सेवकवंशावत्वादपेक्षसेसेवांमयारुतांसेवकवंशजोहं इतिमत्कनासेवांगन For Private And Personal Use Only

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