Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धवलिमासाम्यात्तन्न्यायेनदंभिनंजनमवलोक्यमामपिभिनलोकःशंकततर्कयति किंभूतमात्व यात्यक्तमननुगृहीतंतवानुग्रहाशावादयमापदांभिकभक्तइत्याशंकास्पदमितिभावः॥२७॥ इदानींकरुणामृहुभावान्नायपरकीयइतिषार्थितनप्रयच्छसिचन्माप्रयच्छ सामिसेवकभावनत्वव क्षारणदग्धजिव्हस्तकंफूलत्यपामर पिबतिरंभिनमवलोक्यजनस्ताइन्मांशं कोत्वयात्यकं॥२७॥मयिकरुणामृदुभावायदिनाभाटंकरोषिमाकुरुतत्॥ स्वस्वामिभावमीशसीयंप्रकटीकुरुधमाकुरुतत॥२०॥ 5 श्यमभीएंदेहातिमार्थया ति मयीति करुणामृदुभावादपियदिमपिनाशीरंकरोषिस्वाभिलषितंनप्रयच्छसिमाप्रयच्छमस्या भारहेईशप्रभातर्हिस्वस्वामिभावस्वामित्वंप्रकटीकुरुषईशेनिसंगेधनराज्ञांसामिलपोतनार्थअस्मिन्पयेस |स्वामिभावमित्यत्रस्वस्मिन्स्वामिभावावस्वामिभावइनिनोचे स्वीयमितिपदेनपुनरूतताशेष समायानिमा // 2 // For Private And Personal Use Only

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