Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोदयानिधेत्वयियत्काठिन्यमहिषयकंनदेवममाश्चर्यवद्भातीत्याह चित्तेति चित्तचमत्कनिकार, गंममचित्तेचमत्कत्तिकारणमाश्चर्यकारणंकिंतदित्याह इदमेवेहत्तावत्कारणंयन्परिषयकंभवन सश्रीमत्तकाठिन्यनिर्दयलंनतुत्वयैवंवक्तव्यमयिकाठिन्यंनास्तीनितदनुतर्हिसेवकलोकेस चित्तचमत्कृतिकारणमिदमिहतावद्भवसकाठिन्यम्।। तदनुचसेवकलोकेलोकेशकथंकगेरतांयासि॥१७॥ इत्यादौमद्रूपेहेलोकेशत्रिभुनपनेकिमितिकठोरतांयासिनिर्दयतांगच्छसिएतत्त्वयिसर्वेश्वरे नोचितमितिभावः॥१७॥ इदानीत्वंममजनकोस्यहंतवबालोस्मिइतिमत्वाममप्सितंदेहीनिषा र्थयति अंकहनि भोप्रभोतवांकेतवोत्संगेकिंभूतेउसंगेगतपंकेअत्यंतनिर्मलेगोष्यमासान For Private And Personal Use Only

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