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१६ अरिहंत-शब्द दर्शन
आगम
आचारांगसूत्र में श्रमण भगवान् महावीर के लिये प्रयुक्त विशेषणों में “अरहं"१ शब्द मिलता है। सूत्रकृतांग सूत्र में जिनधर्म हेतु “धम्म अरहंताभासियरे -शब्द का प्रयोग किया है। स्थानांग सूत्र में देवोद्योत, लोकोद्योत, लोकान्धकार आदि प्रसंगों में . तीर्थंकर के विशेष कल्याणपर्यों के अतिशय वर्णन में “अरहंत"३ शब्द का ही प्रयोग हुआ है। समवायांग सूत्र में अरहतो", अरहा५, अरहओ६, और अरहता" शब्दों का उपयोग हुआ है। भगवती सूत्र के मंगलाचरण में नमस्कार महामंत्र है और इसके प्रथम पद में “णमो अरहंताणं" दिया गया है। नायाधम्मकहा में तीर्थकरत्व प्राप्ति के उपायों का कथन करते हुए प्रथम उपाय में “अरहंत सिद्ध"८ शब्द का प्रयोग हुआ है। राजप्रश्नीय सूत्र में महावीर स्तुति के प्रकरण में अरहंताणं शब्द का प्रयोग हुआ है। कल्पसूत्र में भगवान् महावीर के विशद वर्णन के बाद पार्श्वनाथादि जिनेश्वरों के लिए अरहा शब्द का प्रयोग किया गया है। जैन शिलालेखों में अरहंत ___ कलिंग के चेदी राजवंश के महामेघवाहन मूल के तृतीय सम्राट खारवेल ( ईसा पूर्व प्रथम शती; एक अन्य मत, जिसकी शुद्धता की संभावना कम है, के अनुसार . ईसा-पूर्व दूसरी शती) के हाथी-गुफा (भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाड़ी की गुफाओं में से एक) के शिलालेख में मौर्यकाल के १६५वें वर्ष के शिलालेख में "नमो अरहंतानं" लिखा है।
उदयगिरि : वैकुंठ-गुफा, मौर्यकालीन प्रायः १६५३ वर्षीय एक प्राप्त शिलालेख में 'अरहन्तपसादनं' शब्द का प्रयोग किया है।
प्रथम या द्वितीय ईसवी पूर्व (क्यूरर) पभोसा (इलाहाबाद के पास) में सम्राट आसादसेन द्वारा अंकित शिलालेख में ‘वश्शपीयानं अरह' शब्द का प्रयोग हुआ है।
१. श्रुत. २, अ. १५ २. अ. ६, गा. २९ ३. अ. ३, उ. १, सू. १३४, पत्र ११६-सटीक ४. सम. १६, पत्र ६२/१ ५. सम. ३५, पत्र-१२९; सम. ५४-पत्र १४७; सम. ६३-पत्र १५१/१; सम. ७०-पत्र
१६३/१, सम. ७१-पत्र १६४ ६. सम. ३७ पत्र १३२; सम. ५० पत्र १४३; सम. ५५ पत्र १४८/१; सम. ५६, पत्र ____१४९; सम. ५७, पत्र-१५५/१; सम, ६६-पत्र १५८; सम. ६८, पत्र १६१। ७. सम. ६८-पत्र १६१ ८. अध्य. ८, पत्र १२८. सटीक ९. मलयगिरिकृत वृत्ति सहित पत्र-३९