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अरिहंत का तत्व-बोध २३ । - इसके अलावा वैदिक दर्शन यह भी मानता है कि संसार में जब अधर्म बढ़ जाता है, धर्म की भावनाएं दुर्बल हो जाती हैं, पाप सर्वत्र अपना शासन जमा लेता है, तो पापियों का नाश करने के लिये तथा धर्म की स्थापना करने के लिये ईश्वर अवतार धारण करता है। मनुष्य, पशु आदि किसी न किसी रूप में जन्म लेता है। ___ गीता के अभिमतानुसार ईश्वर, अज और अनन्त होने पर भी अपनी अनन्तता को अपनी माया शक्ति से संकुचित कर शरीरं को धारण करता है। इनकी दृष्टि से ईश्वर तो मानव बन सकता है, किन्तु मानव कभी ईश्वर नहीं बन सकता है। इसी कारण योग्य अवसर पर ईश्वर मानव के रूप में अवतरित होता है, मानव शरीर से जन्म ले सकता है और उसके अवतार लेने का एक मात्र उद्देश्य होता है सृष्टि में चारों ओर जो अधर्म का अंधकार छाया हुआ होता है उसे नष्ट कर धर्म का प्रकाश करना, साधुओं का परित्राण करना, दुष्टों का नाश और धर्म की स्थापना करना। सांख्य-दर्शन . ___सांख्यमतवालों के अनुसार एक पूर्ण सत् (Being) है। सर्व-बन्धनों से मुक्त परमात्मा है। उसकी दृष्टि में कोई भी आत्मा परमात्मा नहीं बन सकता है। परमात्मा एक है, सत् है। वह जगत्कर्ता नहीं है। प्रकृति, जो अचेतन-प्रधान तत्व है, उसी से सृष्टि उत्पन्न होती है। योगदर्शन ___ योग दर्शन में ईश्वर के अधिष्ठान से प्रकृति का परिणाम जड़ जगत् का (विस्तार) माना है। यहाँ ईश्वर को परमपुरुष माना गया है, जो सभी जीवों के ऊपर .और सभी दोषों से रहित है। वह नित्य, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् और परमात्मा है। संसार के सभी जीव अविद्या, अहंकार, वासना, रागद्वेष, अभिनिवेश और मृत्युभय आदि के कारण दुख पाते हैं। - उसकी मान्यता है कि पुरुष और प्रकृति के संयोग से संसार की सृष्टि होती है और दोनों के विच्छेद से प्रलय होता है। प्रकृति और पुरुष दो भिन्न-भिन्न तत्व हैं। दोनों का संयोग और वियोग स्वभावतः नहीं होता है। इसके लिए एक ऐसा निमित्त कारण मानना पड़ता है जो अनन्त बुद्धिमान हो और जीवों के अदृष्ट के अनुसार प्रकृति से पुरुष का संयोग या वियोग करा सके। जीवात्मा या पुरुष स्वयं अपना अदृष्ट नहीं जानता, इसलिए एक ऐसे सर्वज्ञ परमात्मा को मानना आवश्यक है, जो जीवों की आत्मोन्नति तथा मुक्ति के लिये अनुकूल हो। न्याय-दर्शन
इनके अनुसार अच्छे-बुरे कर्म के फल ईश्वर की प्रेरणा से मिलते हैं। ईश्वर जगत् का आदि सर्जक, पालक और संहारक है। वह शून्य से संसार की सृष्टि नहीं करता,