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आराधक से आराध्य ८१ श्वेताम्बर परम्परा दिगम्बर परम्परा तत्वार्थ सूत्र टीका १७. समाधि साधुओं की समाधि संघ-साधु
संघारणा।
समाधि। १८. अपूर्वज्ञानग्रहण लब्धिसंवेग
सम्पन्नता १९. श्रुत-भक्ति प्रवचन-भक्ति
प्रवचन
ध्यान
वात्सल्य २०. प्रवचन प्रभावना प्रवचन प्रभावनता मार्ग-प्रभावना भावना
विजयलक्ष्मी सूरि कृत स्थानक पूजा में अपरनाम वाले बीस स्थानक इस प्रकार दिये हैं
(१) अरिहंत पद (११) चारित्रपद (२), सिद्धपद
(१२) ब्रह्मचर्य पद (३) प्रवंचनपद
(१३) क्रियापद (४) आचार्यपद
(१४) तपपद (५) स्थविरपद
(१५) गोयमपद (६), उपाध्याय पद (१६) जिनपद (७) साधुपद . (१७) संयमपद (८) ज्ञानपद . (१८) अभिनवज्ञानपद (९) दर्शनपद
(१९) श्रुतपद (१०) विनयपद
(२०) तीर्थपद _ नामों के विभिन्न प्रयोग से आराधना में कोई अन्तर नहीं आता है। यहाँ आराधना से मात्र तप-जपादि प्रवृत्ति ही प्रमुख नहीं मानी गई परन्तु विशेष आत्मचिंतन का उद्देश्य-सापेक्ष रूप भी यहाँ स्वीकार किया गया है। - इतना तो निश्चित है कि तीर्थंकर नामकर्म का निकाचित बंध (निकाचन) करने के लिए बीस कारणों में से एक या अधिक की आराधना आवश्यक एवं अनिवार्य है। वर्तमानकालीन चौबीसी में किस तीर्थंकर ने कितने स्थानक की आराधना की उसके उल्लेख में कहा है-प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान ने और अंतिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर ने बीसों स्थानकों की स्पर्शना की तथा शेष अरिहंतों ने १-२-३ तथा सर्व की आराधना की। ___ ज्ञातासूत्र की टीका के अनुसार भगवान मल्लिनाथ स्वामी ने बीसों स्थानकों का आराधन किया है। १. आवश्यक नियुक्ति, गा. १८२।