Book Title: Arihant
Author(s): Divyaprabhashreji
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 244
________________ ....................................................... केवलज्ञान-कल्याणक २११ . मृणाल, कुन्दपुष्प, चन्द्रमा और शंख के समान सफेद तथा देवों के हाथों से नचाये गये चौंसठ चामरों से वींज्यमान जिन भगवान जयवन्त होवें। ये चामर कमलनालों से सुन्दर तंतु जैसे स्वच्छ उज्ज्वल और सुन्दर आकार वाले होते हैं। चामर में रहे बाल (केश) इतने श्वेत एवं तेजस्वी होते हैं कि उनमें से चारों ओर से किरणें निकलती हैं। दण्ड उत्तम रत्नों से खचित एवं सुवर्ण के होते हैं। वींजे जाते हुए ये चामर ऐसे लगते हैं, मानों इन्द्रधनुष नृत्य कर रहे हों। नमन और उन्नमन द्वारा सूचित करते हैं कि प्रभु को नमस्कार करने से सज्जन उच्चगति को प्राप्त करते हैं। झुककर नमस्कार करने वाले शुद्धभाव वाले होकर ऊर्ध्वगति यानी मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं। सिंहासन भगवन्त जब विहार करते हैं, तब पादपीठ सहित निर्मल स्फटिक मय उज्ज्वल सिंहासन भगवान के आगे आकाश में चलता है। भगवान विराजते हैं, तब समुचित स्थान पर नीचे व्यवस्थित हो जाता है। समवसरण में अशोकवृक्ष के मूल के चार दिशाओं में चार सिंहासन होते हैं। सिंहासन का स्कन्दबन्ध (पीछे का पीठ टेकने का भाग) अत्यंत तेजस्वी एवं रक्तवर्ण का होता है। ये सिंहासन स्पष्ट दिखती ऐसी विकट दाढ़ाओं से युक्त विकराल सिंह जैसी आकृति पर प्रतिष्ठित होता है। यह सिंहासन अनेक उत्तम रलों से खचित होता है। रत्नों में से अनेक रंग की किरणें निकलती हैं। देवताओं द्वारा रचित ऐसे सुन्दर विशाल सिंहासन का वर्णन कौन कर सकता है। प्रत्येक सिंहासन के आगे जिनके रल में से अत्यन्त प्रकाशमान ज्योति समूह निकल रहा है, ऐसा पादपीठ होता है। उसका दिव्य प्रकाश ऐसा लगता है, मानो भगवान के पादस्पर्श की प्राप्ति से उल्लास वाला बन गया हो। __समवसरण के मध्य में चार दिशा में चार सिंहासन होते हैं। जिसमें एक सिंहासन पर परमात्मा स्वयं बिराजते हैं और अन्य तीन पर परमात्मा के तीन प्रतिरूप रहते हैं। भरतेश वैभव में सिंहासन का वर्णन करते हुए कहा है कि एक पीठ वैडूर्यरत्न के द्वारा निर्मित है, उसके ऊपर सुवर्ण के द्वारा निर्मित दूसरा पीठ है। उसके ऊपर अनेक रलों से निर्मित पीठ है। इस प्रकार रत्नत्रय के समान एक के ऊपर एक पीठत्रय विराजमान सबसे ऊपर के पीठ पर अनेक रत्नों के द्वारा कीलित चार सिंह हैं। उनकी आंखें खुली व लाल, उठा हुआ पुच्छ एवं केशर, जटाजाल बिखरा हुआ है। पूर्व, पश्चिम, दक्षिण व उत्तर दिशा की ओर उनमें एक-एक सिंह की दृष्टि है। उन सिंहों के ऊपर एक सुवर्ण कमल हजार दल से युक्त है। केशर व कर्णिका से युक्त होने के कारण दशों

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