Book Title: Arihant
Author(s): Divyaprabhashreji
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 294
________________ ...................................................... निर्वाण-कल्याणक २६१ . इस प्रकार तीर्थंकर नामकर्म का विपाकोदय सम्पन्न होने पर प्राप्त अवस्था सिद्ध-अवस्था है। वस्तुतः सिद्धस्थिति यानी-अवस्थातीत स्थिति। यह अरिहंत की उत्तरावस्था है। यह अवस्था प्रत्येक सिद्धात्मा की समान होती है। इस अवस्था में अब कोई भेद नहीं पाया जाता है। देह के साथ ही सारे भेद समाप्त हो जाते हैं। सम्पूर्ण निष्क्रिय हो जाने पर भी इनकी भाव-करुणा पारमार्थिकं भाव वालों के लिये सक्रिय रहती है। आत्मभावों की रमणता में साधक उनका स्मरण कर प्यार भरे नमस्कार कर देहातीत अवस्था का अनुभव करते हैं। उनके साथ उस अन्तिम अपार्थिव आत्म-ऐश्वर्य के अनंत आनंद की अनुभूति करते हैं। ऐसी परम अनुभूति को अभिव्यक्ति का रूप देने वाले अनंत सिद्धों के साथ सिद्धत्व में लीन अरिहंतों को नमन हो, अनंत सिद्धों को नमन हो।

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