Book Title: Arhat Vachan 2003 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ जैन (धर्म संरक्षिणी) महासभा के मुखपत्र जैन गजट के सम्पादक, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ इन्दौर की शोध त्रैमासिकी अर्हत् वचन के परामर्श मण्डल के प्रमुख, भगवान महावीर ज्योति रथ प्रवर्तन समिति के महामंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ समाज को प्रदान कर रहे हैं साथ ही स्वयं के नाती पोतों को प्यार एवं दुलार के साथ दे रहे हैं सुश्रावक / श्राविका के संस्कार । कुशल एवं निर्भीक वक्ता श्री नरेन्द्रप्रकाशजी अपने छात्र जीवन से ही एक कुशल प्रतिभा सम्पन्न एवं तर्क प्रवण प्रभावक वक्ता थे। मण्डल एवं प्रदेश स्तर पर वाद विवाद प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर आपने अनेक पुरस्कार एवं चलित मंजूषाएँ प्राप्त कीं। समय के साथ साथ आपकी इस प्रतिभा में निखार आता ही गया एवं वर्तमान में वे जैन समाज के सर्वश्रेष्ठ प्रभावी, निर्भीक एवं निष्पक्ष वक्ता हैं। आगम के तलस्पर्शी ज्ञान ने इस कला में सोने में सुहाने का काम किया। कुशल वक्तृत्व शैली के कारण आपको कोलकाता की समाज द्वारा 'वाणीभूषण, अ. भा. दिगम्बर जैन महासभा द्वारा 'व्याख्यान वाचस्पति एवं जैन मठ कोल्हापुर द्वारा 'व्याख्यान केसरी' की उपाधि से विभूषित किया गया है। , सिद्धहस्त लेखक एवं सम्पादक यह सत्य है कि आपने कोई विशालकाय ग्रन्थ या काव्य आदि नहीं रचा है किन्तु मधुर स्मृतियाँ, शाकाहार एक आन्दोलन', आचार्य विमलसागर, आचार्य विद्यानन्द : व्यक्तित्व एवं कृतित्व', 'हिन्दी रचना कल्पद्रुम', 'जैन पर्व : एक अनुचिन्तन' जैसी लघु एवं प्रभावी कृतियाँ प्रस्तुत कर आपने एतद् विषयक अपनी क्षमताओं का दिग्दर्शन करा दिया है। यदि गुलेरीजी 5 कहानियाँ लिखकर हिन्दी साहित्य में अमर हो सकते हैं तो अत्यन्त समसामयिक एवं महत्वपूर्ण विषयों पर लगभग 300 सम्पादकीय एवं अन्य आलेख लिखने वाले प्राचार्यजी क्यों नहीं ? आपके दो निबन्ध संग्रह "चिन्तन का प्रवाह एवं 'समय के शिलालेख' मेरे सम्मुख हैं। इनमें विषयवस्तु का प्रौढ़ निदर्शन, भाषा की सरलता, सहजता, शैली का चुटीलापन, व्यंगोक्तियाँ विषय की आवश्यकता के अनुरूप संकलित गाथाएँ, दोहे, शेरो शायरी, एवं आगम के सन्दर्भ दृष्टव्य हैं। धर्म दर्शन, श्रमणाचार, श्रावकाचार, सामयिकी, साधक के पर्व, समस्याएँ और समाधान, अंकुर आनन्द के विविधा आदि उपशीर्षकों के अन्तर्गत इनमें संकलित आपके 70-80 आलेख ही आपको अमर बना चुके हैं। किन्तु अभी तो 200 से ज्यादा आलेख पुस्तकाकार रूप में आने शेष हैं। शोध पत्रिकाओं के अलावा शेष पत्रपत्रिकाओं का जीवन थोड़ा होता है उनमें निहित सम्पादकीय अंश समय के साथ बिसरा दिये जाते हैं किन्तु निबन्ध / आलेख संग्रह के रूप में उनके आने से इन विचारों का बेहतर मूल्यांकन हो सका है। प्राचार्यजी के राष्ट्रीय अभिनन्दन समारोह के अवसर पर उनके द्वारा स्फुट रूप में लिखी सम्पूर्ण सामग्री का संकलन एवं उनका पुस्तकाकार प्रकाशन एक बेहतर एवं आवश्यक रूप से किया जाने योग्य निर्णय होगा, यह मेरा अभिमत एवं आग्रह पूर्व निवेदन है। - 6 - - सम्पादन का काम लेखन से अधिक जटिल होता है। दूसरों के विचारों की मौलिकता को अक्षुण्ण रखते हुए उसे भाषा एवं शैली की दृष्टि से तराशना जटिल श्रम एवं समयसाध्य कार्य होता है। प्राचार्यजी ने इस क्षेत्र में अनुकरणीय मानक स्थापित किये हैं। Jain Education International समर्पित शिक्षक एवं प्रशासक शिक्षा के पावन क्षेत्र में व्यवसाय की पवित्रता एवं शिक्षक की गरिमा को अक्षुण्ण रखने हेतु उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। प्राचार्य के रूप में पी. डी. जैन इण्टर कॉलेज, फिरोजाबाद को आपने इतना सुन्दर नेतृत्व दिया कि 'प्राचार्यजी' आपके नाम का पर्याय बन गया। कविवर हरिऔध की पंक्तियाँ 'कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला' के अनुरूप मैं तो यह कहना चाहूँगा कि आप अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 136