Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
पर्याप्त विस्तार के साथ लिखा गया है। इसके पश्चात् अध्याय चार में आराधनापताका में समाधिमरण की प्रक्रिया की अतिविस्तार से चर्चा की गई है। अध्याय पांच में जैन दर्शन की समाधिमरण सम्बन्धी अवधारणा की अन्य धर्मो में उससे मिलती-जुलती अवधारणाओं की तुलना की गई।
अध्याय छह में प्राचीनाचार्य विरचित इस आराधनापताका में सूचित कथानिर्देशों के आधार पर वह कथा किस रूप में है तथा अन्यत्र किन-किन ग्रन्थों में मिलती है -इसकी विस्तृत चर्चा है। इसके पश्चात् अग्रिम सातवें अध्याय में समाधिमरण की अवधारणा की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में क्या उपयोगिता है ? इस प्रश्न पर वर्तमान में प्रचलित इच्छामृत्यु या करूणापूर्वक मृत्युदान आदि की विस्तृत चर्चा की गई है। अन्त में अष्टम अध्याय उपसंहार में समाधिमरण के मूल्य और महत्त्व का अंकन किया गया है।
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