Book Title: Aradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Author(s): Pratibhashreeji, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन स्वकथ्य जैन-दर्शन में मुक्ति-मार्ग के रूप में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र के रूप में 'रत्नत्रय' का विधान है। सम्यक्चारित्र में ही सम्यक्तप का भी समावेश हो जाता है। तप के सर्वोत्कृष्ट रूप में शीर्ष पर समाधिमरण का स्थान है, जिसमें साधक मृत्यु-भय से मुक्त होकर समाधि--भावपूर्वक उपस्थित मृत्यु का वरण करता है। जैन साधना-पद्धति में तप व उसमें भी समाधिमरण के महत्त्व को देखते हुए स्वाभाविक रूप से जहाँ आगम-शास्त्रों में इस विषय पर अनेक स्थलों पर चर्चा हुई है, वहीं इस विषय पर जैनाचार्यों द्वारा अनेक स्वतंत्र ग्रंथों की रचना भी की गई है। इनमे प्रकीर्णक ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका प्रकीर्णक एक ऐसा ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें समाधिमरण का सांगोपांग विवरण उपलब्ध है। मेरे इस शोध कार्य का मुख्य उद्देश्य इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रकीर्णक ग्रंथ में दी गई समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन करना तथा इस विषय पर अन्य ग्रंथों में उपलब्ध सामग्री के साथ उसका तुलनात्मक अध्ययन करना रहा है। प्रस्तुत कृति में इस विषय को बत्तीस अध्ययनों या द्वारों के द्वारा सांगोपांग रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। 932 गाथाओं में प्राकृत भाषा में रचित यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रकीर्णक ग्रंथ है। प्राचीनाचार्य विरचित 'आराधनापताका' नामक इस प्रकीर्णक का समीक्षात्मक अध्ययन तो दूर की बात है, अभी तक तो उसका भाषानुवाद भी नहीं हुआ है। यद्यपि इस ग्रंथ की उपलब्ध विभिन्न पांडुलिपियों के आधार पर इसका संपादन कार्य मुनि पुण्यविजयजी द्वारा किया गया है, किन्तु अनुवाद एवं समीक्षात्मक अध्ययन द्वारा इसकी विषय-वस्तु का लाभ जन-सामान्य ही नहीं प्राकृतभाषा से अपरिचित विद्वत्-वर्ग आज तक नहीं पहुँच पाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 242