Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 19
________________ पाठ 11-सुदंसणचरिउ सिविणंतरु = सिविण+अंतरु (स्वपन के भीतर) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। णिसुणिवि = णिसुण+इवि (सुनकर) . नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। जईस = जइ+ईस (शक्तिसंपन्न यति) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (ख) इ+ई = ई। .. पाठ 12-करकंडचरिउ खमीसु = खम+ईसु (क्षमा कीजिए, हे नाथ) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। पाठ 13-धण्णकुमारचरिउ मारणत्थि = मारण+अत्थि (मारने के इच्छुक) नियम 4- लोप-विधान सन्धिः (क) स्वर के बाद स्वर होने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। भयाउर = भय+आउर (भय से पीड़ित) . नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। विसमावत्थहिं = विसम+अवत्थहिं (कठिन (विषम) अवस्था में) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। पवणाहय = पवण+आहय (वायु से आघात प्राप्त) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+आ = आ। चरणारविंद = चरण+अरविंद (चरणरुपी कमल) नियम 1- समान स्वर सन्धिः (क) अ+अ = आ। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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