Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 61
________________ 2. 3. 4. 5. 6. 8. 9. 10. 50 मधुभार छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं। पद्धडिया छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में जगण (ISI) होता है । गाहा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं। जम्भेटिया छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में नौ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण (SIS) आता है। जम्भेटिया छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में नौ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण ( SIS) आता है। कुसुमविलासिका छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के प्रारम्भ में नगण ( 111 ) और अन्त में लघु (1) व गुरु (S) होता है। अडिल्ल (अलिल्लह) छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो मात्राएँ लघु ( 11 ) होती हैं। उप्पहासिणी छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अन्त में लघु-गुरु-लघु-गुरु होता है। चारुपद छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में गुरु (S) व लघु ( 1 ) होता है। Jain Education International अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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