Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 70
________________ 4. 5. 6. तोमर छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में चार बार गुरु (s) व चार बार लघु (1) आता है। सोमराजी छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में दो यगण (Iss+Iss) व 6 वर्ण होते हैं। स्रग्विणी छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में चार रगण (ऽ।ऽ+SIS+SIS+SIs) व 12 वर्ण होते हैं। प्रमाणिका छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण (151), रगण (sis), लघु (1) व गुरु (s) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं। चित्रपदा छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में दो भगण (5।।+SI) और दो गुरु (ss) होते हैं व आठ वर्ण होते हैं। 8. अभ्यास (घ) - 1. शालभंजिका छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में चउवीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है। मदनावतार छन्द . लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण (sis) होता है। मंजरी छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ 3. होती हैं। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक 59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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