Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 69
________________ 6. 7. 9. 10. 1. 2. 3. 58 रासाकुलक छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में नगण ( 111 ) होता है । मंजरी छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ होती हैं। प्रमाणिका छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण (ISI), रगण ( SIS), लघु (1) व गुरु (S) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं। समानिका छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में क्रमशः रगण (SIS), जगण (ISI), गुरु (s) व लघु (1) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं। चित्रपदा छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में दो भगण ( SII+SII) और दो गुरु (ss) होते हैं व आठ वर्ण होते हैं । अभ्यास (ग) सारीय छन्द लक्षण इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में गुरु (s) व लघु ( 1 ) होता है। लाद्विपदी छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में बाइस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो गुरु (SS) होते हैं । कामलेखा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएँ होती हैं। Jain Education International अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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