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रासाकुलक छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ
होती हैं तथा चरण के अन्त में नगण ( 111 ) होता है ।
मंजरी छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ होती हैं।
प्रमाणिका छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण (ISI), रगण ( SIS), लघु (1) व गुरु (S) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं।
समानिका छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में क्रमशः रगण (SIS), जगण (ISI), गुरु (s) व लघु (1) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं।
चित्रपदा छन्द
लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में दो भगण ( SII+SII) और दो गुरु (ss) होते हैं व आठ वर्ण होते हैं ।
अभ्यास (ग)
सारीय छन्द
लक्षण
इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में गुरु (s) व लघु ( 1 ) होता है। लाद्विपदी छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में बाइस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो गुरु (SS) होते हैं ।
कामलेखा छन्द
लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएँ होती हैं।
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अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
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