________________
8.
भुजंगयप्रयात छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में चार यगण (Iss+Iss+Iss+Iss) व 12 वर्ण होते हैं। स्रग्विणी छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में चार रगण (sis+s/s+s/s+sis) व 12 वर्ण होते हैं। . सोमराजी छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में दो यगण (Iss+Iss) व 6 वर्ण होते हैं।
10.
1.
अभ्यास (ख) रयडा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं। निध्यायिका छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में उन्नीस मात्राएँ होती हैं। शशितिलक छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं तथा सर्वत्र लघु (1) होता है। दुवई छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में अट्ठाइस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है। आरणाल छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में तीस मात्राएँ होती हैं।
4.
अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
57
57
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org