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________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 56 छन्द (खण्ड 2 ) अभ्यास ( क ) विलासिनी छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (5) होता है। ' मत्तमातंग छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में अट्ठारह मात्राएँ होती हैं. तथा चरण के अन्त में जगण (ISI) होता है । चउपही (चतुष्पदी) छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो मात्राएँ, लघु (1) होती हैं। तोटक छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में चार सगण (IIS+IIS+IIS+IIS ) व 12 वर्ण होते हैं। शालभंजिका छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में चउवीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (S) होता है । मदनावतार छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में बीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण ( SIS) होता है । लताकुसुम छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में तीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में सगण ( 115 ) होता है । अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004212
Book TitleApbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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