Book Title: Apbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 71
________________ 4. 5. 6. रासाकुलक छन्द — लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में इक्कीस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में नगण (1) होता है। हेलाद्विपदी छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में बाइस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो गुरु (ss) होते हैं। आरणाल छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में तीस मात्राएँ होती हैं। कामलेखा छन्द लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में सत्ताइस मात्राएँ होती हैं। समानिका छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में क्रमशः रगण (sis), जगण (151), गुरु (s) व लघु (1) आते हैं व आठ वर्ण होते हैं। स्रग्विणी छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में चार रगण (sis+ss+ss+s/s) व 12 वर्ण होते हैं। 60 अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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