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मधुभार छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं।
पद्धडिया छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में जगण (ISI) होता है ।
गाहा छन्द
लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं।
जम्भेटिया छन्द
लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में नौ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण (SIS) आता है।
जम्भेटिया छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में नौ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण ( SIS) आता है।
कुसुमविलासिका छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के प्रारम्भ में नगण ( 111 ) और अन्त में लघु (1) व गुरु (S) होता है।
अडिल्ल (अलिल्लह) छन्द
लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में दो मात्राएँ लघु ( 11 ) होती हैं। उप्पहासिणी छन्द
लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और अन्त में लघु-गुरु-लघु-गुरु होता है।
चारुपद छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में गुरु (S) व लघु ( 1 ) होता है।
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अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
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