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मधुभार छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं।
दीपक छन्द
लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) होता है।
वदनक छन्द
लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती है तथा चरण के अन्त में दो मात्राएँ लघु ( 11 ) होती हैं। अमरपुरसुन्दरी छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है। मोक्तिकदाम छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में चार जगण ( ISI + ISI + ISI + ISI ) व 12 वर्ण होते हैं।
वसन्तचत्वर छन्द
लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में जगण (ISI), रगण (SIS), जगण (ISI), रगण ( SIS) व 12 वर्ण होते हैं। पंचचामर छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में जगण (ISI), रगण ( SIS), जगण ( 151 ), रगण ( SIS), जगण (ISI) और गुरु व 16 वर्ण होते हैं।
अभ्यास (ग)
1. करिमकरभुजा छन्द
लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु-गुरु (15) होते हैं।
अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक
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