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________________ 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. मधुभार छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं। दीपक छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) होता है। वदनक छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती है तथा चरण के अन्त में दो मात्राएँ लघु ( 11 ) होती हैं। अमरपुरसुन्दरी छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है। मोक्तिकदाम छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में चार जगण ( ISI + ISI + ISI + ISI ) व 12 वर्ण होते हैं। वसन्तचत्वर छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी) । प्रत्येक चरण में जगण (ISI), रगण (SIS), जगण (ISI), रगण ( SIS) व 12 वर्ण होते हैं। पंचचामर छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में जगण (ISI), रगण ( SIS), जगण ( 151 ), रगण ( SIS), जगण (ISI) और गुरु व 16 वर्ण होते हैं। अभ्यास (ग) 1. करिमकरभुजा छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु-गुरु (15) होते हैं। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only 49 www.jainelibrary.org
SR No.004212
Book TitleApbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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